ज़बाँ पर आह रही लब से लब कभू न मिला तिरी तलब तो मिली क्या हुआ जो तू न मिला बदल के रूप मिला वज़्अ-ए-आमियाना में लिबास-ए-ख़ास पहन कर वो ख़ूब-रू न मिला वो आरज़ू से मिला जब कुछ आरज़ू न रही न जब तलक गई मिलने की आरज़ू न मिला पियाला रू-ब-रू आए तो अश्क-ए-ख़ूँ न बहा शराब-ए-नाब में ऐ चश्म-तर लहू न मिला सुना दे साक़ी-ए-दौराँ को नाला-हा-ए-'मज़ाक़' सिपिहर-ए-ख़ाक में मस्तों की हाव-हू न मिला