ज़बान-ए-हाल पे सब्र-ओ-रज़ा के लहजे में नवा-ए-ग़म है तिरे बे-नवा के लहजे में ये पा-ए-जब्र से रौंदी हुई तमन्नाएँ हैं महव-ए-गिर्या-ए-पैहम दुआ के लहजे में हवा का शोर गिराँ है समाअ'त-ए-गुल पर सो मैं हूँ तुझ से मुख़ातब सबा के लहजे में वक़ार-ए-अहद-ए-मुहब्बत लिहाज़-ए-शर्त-ए-वफ़ा शिकस्त-ख़ुर्दा पड़े हैं अना के लहजे में ये शेर यूँही नहीं मो'तबर हुए लोगों 'वफ़ा' का रंग है इब्न-ए-वफ़ा के लहजे में