जबीं पे गर्द-ए-कुदूरत मिरा उसूल नहीं जफ़ा-ए-अहल-ए-ज़माना पे दिल मलूल नहीं मिरी ख़ुदी तो खटकती थी तेरी आँखों में तिरे हुज़ूर मिरा इज्ज़ भी क़ुबूल नहीं ये बिखरे तारे ये बे-नज़्म फूल शाहिद हैं नुमूद-ए-हुस्न में पाबंदी-ए-उसूल नहीं ज़रूर कुछ तो है अपनी हयात का मक़्सद सुना है चीज़ कोई दहर में फ़ुज़ूल नहीं मिरे वक़ार पे तेरे करम पे हर्फ़ आता मक़ाम-ए-शुक्र है मेरी दुआ क़ुबूल नहीं मिरे ग़ुबार से दामन-कशाँ हो क्यूँ यारो चमन की बू-ए-परेशाँ हूँ बन की धूल नहीं