ज़ब्त अपना शिआर था न रहा दिल पे कुछ इख़्तियार था न रहा दिल-ए-मरहूम को ख़ुदा बख़्शे एक ही ग़म-गुसार था न रहा आ कि वक़्त-ए-सुकून-ए-मर्ग आया नाला ना-ख़ुश-गवार था न रहा उन की बे-मेहरियों को क्या मालूम कोई उम्मीद-वार था न रहा आह का ए'तिबार भी कब तक आह का ए'तिबार था न रहा कुछ ज़माने को साज़गार सही जो हमें साज़गार था न रहा अब गरेबाँ कहीं से चाक नहीं शुग़्ल-ए-फ़स्ल-ए-बहार था न रहा मौत का इंतिज़ार बाक़ी है आप का इंतिज़ार था न रहा मेहरबाँ ये मज़ार-ए-'फ़ानी' है आप का जाँ-निसार था न रहा