ज़ब्त से दिल नज़ार रहता है By Ghazal << न कोई नक़्श न पैकर सराब च... हासिल-ए-ज़ीस्त इश्क़ ही त... >> ज़ब्त से दिल नज़ार रहता है अंदरूनी बुख़ार रहता है यूँ तो दिल को कभी क़रार न था अब बहुत बे-क़रार रहता है क़त्अ उम्मीद हो तो सब्र आए रोज़ इक इंतिज़ार रहता है माया-ए-ज़िंदगी सुख़न है 'नज़र' शेर ही यादगार रहता है Share on: