ज़ब्त से काम ले आहों में असर होने तक शम्अ' हर रंग में जलती है सहर होने तक वो नशेमन भी तो सय्याद मिरा छूट गया हम बचाए थे जिसे नज़्र-ए-शरर होने तक तुम न आए तो शब-ए-हिज्र सितारे चुन कर हम ने पलकों में सजाए थे सहर होने तक सिलसिला गिर्या-ए-पैहम का न छूटे या-रब उस के दामन का मिरे अश्कों से तर होने तक अपना मस्लक है यही कार-गह-ए-रज़्म-ए-हयात कश्मकश जारी रहे मा'रका सर होने तक मुंतज़िर आप रहें हम तो चले ऐ 'हमदम' नख़्ल-ए-गुलज़ार-ए-तमन्ना में समर होने तक