तमाशा-ए-अलम है और मैं हूँ ख़ुशी के साथ ग़म है और मैं हूँ ज़माने का सितम है और मैं हूँ ये सब उन का करम है और मैं हूँ रह-ए-हक़ पर क़दम है और मैं हूँ सर-ए-अफ़्लाक ख़म है और मैं हूँ तमव्वुज पर अभी है बहर-ए-हस्ती सफ़ीना ज़ेर-ओ-बम है और मैं हूँ अभी कैसे कहूँ सुब्ह-ए-बहाराँ अभी तो शाम-ए-ग़म है और मैं हूँ कहीं बज़्म-ए-नशात-ए-ऐश-ओ-इशरत कहीं पर चश्म-ए-नम है और मैं हूँ बदल डालूँ निज़ाम-ए-ज़िंदगी ये बड़ी मुश्किल में दम है और मैं हूँ किसी लम्हा भड़क कर बुझ न जाए चराग़-ए-सुब्ह-दम है और मैं हूँ मुझे तन्हा न समझो मेरे 'हमदम' हुजूम-ए-रंज-ओ-ग़म है और मैं हूँ