ज़ब्त से यूँ भी काम लिया है काँटों में आराम लिया है चाहे जिधर ले जाए मोहब्बत अब तो दामन थाम लिया है काश वही आराम से रहता जिस ने मिरा आराम लिया है हुस्न ने जब ठोकर खाई है इश्क़ ने बाज़ू थाम लिया है साक़ी का एहसाँ नहीं हम पर ख़ून दिया है जाम लिया है ठोकर खाई बढ़ गए आगे नाकामी से काम लिया है हुस्न-ए-बुताँ को देख के 'शारिब' हम ने ख़ुदा का नाम लिया है