ज़ब्त-ए-ग़म से सिवा मलाल हुआ अश्क आए तो जी बहाल हुआ फिर से बुझने लगी है बीनाई फिर तिरी दीद का सवाल हुआ इक ज़रा चाँद के उभरने से देख सूरज का रंग लाल हुआ कितने लोगों से मिलना-जुलना था ख़ुद से मिलना भी अब मुहाल हुआ हम ने माज़ी का हर वरक़ पल्टा हम को हर बात पर मलाल हुआ हम तो टुक देखते रहे उस को राएगाँ लम्हा-ए-विसाल हुआ दर्द अशआर में उतर आया लोग कहने लगे कमाल हुआ