ज़ब्त-ए-गिर्या में भी गिर्या तो किया है मैं ने चुप रहा हूँ प तमाशा तो किया है मैं ने अब उड़ाऊँगा उसे तेरे फ़लक पर इक दिन अपनी मिट्टी को इकट्ठा तो किया है मैं ने देखिए किस के ख़द-ओ-ख़ाल नज़र आते हैं एक दीवार को शीशा तो किया है मैं ने अब मैं कुछ और बनूँ ऐसी बयाबानी में टूट जाने का इरादा तो किया है मैं ने खुल के मैं वस्ल की बातें नहीं करता फिर भी बातों बातों में तक़ाज़ा तो किया है मैं ने प्यार की हद ही नहीं कोई ये माना लेकिन जितना हो सकता है उतना तो किया है मैं ने शायद आ जाए ख़बर अपने अलावा हूँ कहाँ ख़ुद को तन्हाई में तन्हा तो किया है मैं ने मुझ में तश्कीक भी सर अपना उठा सकती है ऐ ख़ुदा तुझ पे भरोसा तो किया है मैं ने जाने अब कौन गली में कहीं निकलूँ जा कर एक वीराने में रस्ता तो किया है मैं ने वो कहीं है कि नहीं है मुझे मा'लूम नहीं अपने होने का इशारा तो किया है मैं ने अब फ़क़त आख़िरी इश्क़ आख़िरी मक़्सूद-'वफ़ा' आख़िरी इश्क़ कि पहला तो किया है मैं ने