ज़ब्त-ए-नाला से आज काम लिया गिरती बिजली को मैं ने थाम लिया पा-ए-साक़ी पे तौबा लोट गई हाथ में इस अदा से जाम लिया फूल का जाम जब गिरा कोई हम ने पलकों से बढ़ के थाम लिया आफ़रीं तुझ को हसरत-ए-दीदार चश्म-ए-तर से ज़बाँ का काम लिया दिल जिगर नज़्र कर दिए मय के दे के दो शीशे एक जाम लिया उल्टी इक हाथ से नक़ाब उन की एक से अपने दिल को थाम लिया तर्क-ए-मय की हुई तलाफ़ी यूँ नाम साक़ी का सुब्ह ओ शाम लिया आ गई क्या किसी की याद 'जलील' चलते चलते जिगर को थाम लिया