पेच रखते हो बहुत साहिबो दस्तार के बीच हम ने सर गिरते हुए देखे हैं बाज़ार के बीच बाग़बानों को अजब रंज से तकते हैं गुलाब गुल-फ़रोश आज बहुत जमा हैं गुलज़ार के बीच क़ातिल इस शहर का जब बाँट रहा था मंसब एक दरवेश भी देखा उसी दरबार के बीच कज-अदाओं की इनायत है कि हम से उश्शाक़ कभी दीवार के पीछे कभी दीवार के बीच तुम हो ना-ख़ुश तो यहाँ कौन है ख़ुश फिर भी 'फ़राज़' लोग रहते हैं इसी शहर-ए-दिल-आज़ार के बीच