ज़ब्त-ए-उल्फ़त का यही हम को सिला मिल जाए दश्त में और कोई आबला-पा मिल जाए आगही और कई नक़्श बना सकती है तुम जो इंसान को ढूँडो तो ख़ुदा मिल जाए यही बेहतर है कि ख़ुद राह में गुम हो जाएँ इस से पहले कि कोई राह-नुमा मिल जाए आओ ज़ंजीर की झंकार पे हम रक़्स करें क्या तअ'ज्जुब जो यूँही जिंस-ए-वफ़ा मिल जाए इसी धुन में तो हम आवारा फिरा करते हैं कहीं शायद तिरे आँचल की हवा मिल जाए अब तिरा ध्यान है यूँ जैसे अँधेरी शब में इत्तिफ़ाक़न कोई मिट्टी का दिया मिल जाए