जादा-ए-शौक़ है गुल-पोश तो पुर-ख़ार भी है जुस्तुजू है तिरी आसान तो दुश्वार भी है जज़्बा-ए-दिल की सदाक़त का ये क्या कम है सुबूत मेरे होंटों पे तिरा नाम सर-ए-दार भी है साहिब-ए-ज़र्फ़ जो गर्दाने गए हैं मय-नोश साक़िया देख कि उन में कोई हुशियार भी है सोग शब्बीर का हर साल मनाने वालो तुम को किरदार-ए-हुसैनी से सरोकार भी है सादा-लौहों से कहो आज वो मोहतात रहें वक़्त के हाथ में क़ानून भी तलवार भी है चैन इंसाँ को किसी तरह नहीं आज कि वो 'तालिब'-ए-ज़ीस्त भी है ज़ीस्त से बेज़ार भी है