जादा-ए-इश्क़ में गिर गिर के सँभलते रहना पाँव जल जाएँ मगर आग पे चलते रहना जल्वा-ए-अम्न तुम्हीं से है मोहब्बत वालो महर-ए-ताबाँ की तरह रोज़ निकलते रहना नग़्मा-ए-इश्क़ न हो एक ही धुन पर क़ाइम वक़्त के साथ ज़रा राग बदलते रहना ज़िंदगी को मह-ओ-अंजुम न उजाला देंगे तुम न इन झूटे खिलौनों से बहलते रहना है यही वक़्त-ए-अमल जोहद-ए-मुसलसल की क़सम बे-सहारों की तरह हाथ न मलते रहना ज़िंदगानी है फ़क़त गर्मी-ए-रफ़्तार का नाम मंज़िलें साथ लिए राह पे चलते रहना है सितारों की तरह माइल-ए-परवाज़ 'शकील' दुश्मनो तुम को क़सम है यूँही जलते रहना