जादू-ए-ख़्वाब में कुछ ऐसे गिरफ़्तार हुए बारिश-ए-संग हुई भी तो न बेदार हुए जब थे ख़ुश-हाल भले लगते थे रिश्ते ग़म के अब वही रिश्ते मिरी जान का आज़ार हुए जब तलक पाँव में वहशत थी जुनूँ में ताक़त न किसी साए में बैठे न कभी ख़ार हुए मैं ने जब गल्फ़ में कुछ दौलत-ओ-इज़्ज़त पाई आलम-ए-फ़न भी मिरे हक़ में रज़ाकार हुए जब खुले नक़्द के औसाफ़ ब-फ़ैज़-ए-नक़्दी कुछ रिसालों के एडीटर भी तरफ़-दार हुए वस्ल से जिन के है मग़रिब में क़यामत सी बपा उन ही लौंडों के लिए 'मीर'-जी बीमार हुए गोलियाँ चलने को तय्यार थीं पहले से 'नईम' हम तो बस झंडा उठाने के गुनहगार हुए