जफ़ा-जू ने की थी वफ़ा इत्तिफ़ाक़न बशर है हुई थी ख़ता इत्तिफ़ाक़न ज़माना मुझे रिंद कहने लगा है कभी चख लिया था मज़ा इत्तिफ़ाक़न मिरी ज़िंदगी ढल गई नग़मगी में सुनी थी किसी की सदा इत्तिफ़ाक़न तिरे एक ख़त ने किया राज़ इफ़्शा पड़ा रह गया था खुला इत्तिफ़ाक़न मिरी बे-ख़ुदी ने जहाँ ला के छोड़ा तिरे घर का था रास्ता इत्तिफ़ाक़न धरे रह गए अज़्म-ओ-हिम्मत के दा'वे चली थी मुख़ालिफ़ हवा इत्तिफ़ाक़न बड़ी तेज़ थी धूप नश्तर ग़मों की पड़ा राह में मै-कदा इत्तिफ़ाक़न