इस लिए तेरी हुई दश्त-हँसाई भाई तू ने जल्दी में ज़रा ख़ाक उड़ाई भाई आख़िर-ए-कार कोई उज़्र उसे मिल ही गया ये मोहब्बत भी किसी काम न आई भाई मैं हूँ कोने में पड़ा टूटा हुआ कंगन और ज़िंदगी एक हसीना की कलाई भाई तब मिरा सारा बदन कान में तब्दील हुआ जब किसी ने मुझे आवाज़ लगाई भाई अव्वल अव्वल ये ज़मीं ठहरी रही एक जगह फिर किसी आँख ने पुतली थी घुमाई भाई