जागे कि कोई सोए हम फ़र्ज़ निभा आए हम रात की गलियों मैं आवाज़ लगा आए मालूम नहीं हम को फूलों में छुपा क्या है बातों से तो ज़ालिम की ख़ुशबू-ए-वफ़ा आए ज़ख़्मो पे कोई मरहम रक्खे या नमक छिड़के हम दर्द का अफ़्साना दुनिया को सुना आए उठती चली जाती है दीवार गुनाहों की कह दो ये समुंदर से साहिल पे चला आए अंदाज़-ए-नज़र उस का पागल न कहीं कर दे जब उस की तरफ़ देखूँ आँखों में नशा आए यादों के दरीचों से बचपन की गली झोंके 'राही' मिरे आँगन में ममता की हवा आए