जीने का बन गया है इम्कान ज़िंदगी में तुम आ गए हमारी वीरान ज़िंदगी में हर रास्ता है अब तो आसान ज़िंदगी में शामिल हुआ है जब से क़ुरआन ज़िंदगी में मरने के बा'द इस की मोहलत नहीं मिलेगी कर आख़िरत का प्यारे सामान ज़िंदगी में फिर मिल सकी न उस को जा-ए-पनाह कोई जिस ने भी खो दिए हैं औसान ज़िंदगी में ये कह के अपने दिल को देते हैं हम तसल्ली पूरे हुए हैं किस के अरमान ज़िंदगी में कुछ ऐसे लोग भी हैं दुनिया में तेरी या-रब लेते नहीं किसी का एहसान ज़िंदगी में आदत सी बन गई है अब तो हनीफ़-'राही' झेले हैं जाने कितने तूफ़ान ज़िंदगी में