जागते सोते हुए लिखते हैं शे'र हम रोते हुए लिखते हैं जब भी लिखते हैं मुकम्मल ख़ुद को कहीं कम होते हुए लिखते हैं सुब्ह से शाम तलक भागते हैं ज़िंदगी ढोते हुए लिखते हैं कभी उड़ते हैं सितारों की तरफ़ उन में गुम होते हुए लिखते हैं ख़ुद-बख़ुद सोना उगलती है ज़मीन हम तो दुख बोते हुए लिखते हैं