जागती आँखों से वाबस्ता दिया माँगे है वक़्त-ए-उम्मीद बसारत की दुआ माँगे है गर्द-आलूद फ़ज़ाओं में भटकता मौसम गुम-शुदा लम्हा से ख़ुद अपना पता माँगे है अक्स-दर-अक्स हक़ीक़त की लकीरें रौशन ख़्वाब-दर-ख़्वाब कोई हुस्न-ए-अदा माँगे है अपनी मजरूह निगाहों का सफ़र है जारी जुस्तुजू कर्ब-ए-मसाफ़त की दवा माँगे है मुंसिफ़-ए-वक़्त की मग़रूर समाअत 'ख़ावर' गूँगे मुजरिम से सदाक़त की नवा माँगे है