जहाँ अश्क-ए-हसरत रवाँ छोड़ आए मोहब्बत वहाँ नीम-जाँ छोड़ आए हमारे ही ख़ूँ की गुलों में है सुर्ख़ी चमन-दर-चमन दास्ताँ छोड़ आए क़फ़स की दिल-आवेज़ियाँ हम से पूछो क़फ़स के लिए आशियाँ छोड़ आए भरम खुल न जाए तिरे आस्ताँ का तिरा आस्ताँ मेहरबाँ छोड़ आए मुसाफ़िर न भटकेगा रस्ते से कोई कि हर गाम पर इक निशाँ छोड़ आए धुआँ उठ रहा है जो सेहन-ए-चमन से धुआँ है कहाँ हम फ़ुग़ाँ छोड़ आए भरी अंजुमन में हम आए ग़ज़ल-ख़्वाँ भरी अंजुमन नौहा-ख़्वाँ छोड़ आए उन्हीं वादियों की रुलाती हैं यादें जिन्हें 'बख़्त' हम गुल-फ़िशाँ छोड़ आए