जहाँ कुछ दर्द का मज़कूर होगा हमारा शेर भी मशहूर होगा जहाँ में हुस्न पर दो दिन के ऐ गुल कोई तुझ सा भी कम मग़रूर होगा पड़ेंगे यूँ ही संग-ए-तफ़रक़ा गर तो इक दिन शीशा-ए-दिल चूर होगा मुझे कल ख़ाक-अफ़्शाँ देख बोला यही उश्शाक़ का दस्तूर होगा हुआ हूँ मर्ग के नज़दीक ग़म से ख़ुदा जाने ये किस दिन दूर होगा वही समझेगा मेरे ज़ख़्म-ए-दिल को जिगर पर जिस के इक नासूर होगा हमें पैमाना तब ये देगा साक़ी कि जाम-ए-उम्र जब मामूर होगा जो यूँ ग़म नीश-ज़न हर दम रहेगा तो फिर दिल ख़ाना-ए-ज़ंबूर होगा यही रोना है गर मंज़ूर 'जुरअत' तो बीनाई से तू मअज़ूर होगा