जहाँ में डालते रहते हैं मा-सिवा की तरह दरख़्त चल नहीं सकते मगर हवा की तरह भटक कर आई थी कुछ देर को इधर दुनिया लिपट गई मिरे दिल से किसी बला की तरह मिरे हिसार से बाहर भी वो नहीं रहता मिरे क़रीब भी आता नहीं ख़ुदा की तरह बहुत से रंग उतरते हैं मेरी आँखों में किसी के ध्यान में उलझी हुई सदा की तरह उतर गया मिरे दिल में वो बे-धड़क लेकिन लबों पर आ नहीं पाया है मुद्दआ' की तरह रवाँ-दवाँ हैं मिरे आस-पास की अशिया पड़ा हुआ हूँ ज़मीं पर मैं नक़्श-ए-पा की तरह सिमट सकूँगा न अपने वजूद में 'साजिद' पहन लिया है किसी ने मुझे क़बा की तरह