जहाँ में है हर इक इक न इक अदा के लिए कोई वफ़ा के लिए है कोई जफ़ा के लिए है एक घूँट बहुत शैख़-ए-पारसा के लिए गिलास भर के न दो मय-कशो ख़ुदा के लिए हमारे दर्द को बे-दर्द दर्द जाने क्या ये दर्द वो है कि है दर्द-आश्ना के लिए कहीं तुम्हीं को तुम्हारी नज़र न हो जाए न देखो आइना ऐ जान-ए-मन ख़ुदा के लिए फ़लक को तोड़ के अर्श-ए-बरीं हिला देना है सहल काम मिरे नाला-ए-रसा के लिए ज़हे-नसीब कि अपने वफ़ा-शिआ'रों में मुझी को चुन लिया उस शोख़ ने जफ़ा के लिए हदफ़ बनाएगा दिल को मिरे जिगर को भी तिरी निगाह का पैकाँ नहीं ख़ता के लिए फ़लक से होती हैं नाज़िल बलाएँ बन बन कर कभी जो हाथ उठाता हूँ मैं ख़ुदा के लिए जहान में कोई इस से जुदा नहीं ऐ दिल ख़ता बशर के लिए है बशर ख़ता के लिए अगर है सर तिरे ख़ंजर के वास्ते ऐ तर्क तो है जिगर भी मिरा नावक-ए-अदा के लिए मिला उसी को मज़ा ज़िंदगी का ऐ 'साबिर' जो मर-मिटा है किसी शोख़-ए-पारसा के लिए