जहाँ में कोई हक़ीक़त भी बे-हिजाब नहीं उरूस-ए-मर्ग के मुँह पर मगर नक़ाब नहीं तलब है हुस्न-ए-हक़ीक़ी की फ़स्ल-ए-गुल बर-दोश ये वो किताब है जिस में ख़िज़ाँ का बाब नहीं इशारा कुन है हक़ीक़त का बहर-ए-बे-पायाँ तअ'य्युनात का हासिल ब-जुज़ हबाब नहीं ये आबशार ओ गुल ओ कोहसार ओ माह-ओ-नुजूम मुज़ाहिरे हैं मगर हुस्न बा-नक़ाब नहीं मैं बे-पिए तिरी आँखों को बढ़ के चूम न लूँ रहीन-ए-मिन्नत-ए-मय मस्ती-ए-शबाब नहीं फ़रेब-ए-वहम है 'आग़ा' ये ख़ुद-फ़रामोशी ब-होश-बाश नज़र तेरी कामयाब नहीं