एक कैफ़-ए-सरमदी से खेलता रहता रहूँ मैं

एक कैफ़-ए-सरमदी से खेलता रहता रहूँ मैं
बंदगी में बंदगी से खेलता रहता हूँ मैं

रात दिन ज़िंदा-दिली से खेलता रहता हूँ मैं
रंज-ओ-ग़म में भी ख़ुशी से खेलता रहता हूँ मैं

आज-कल अख़्तर-शुमारों में है मेरा भी शुमार
रात में भी रौशनी से खेलता रहता हूँ मैं

मौत में ही ज़िंदगी है मिस्ल-ए-परवाना मिरी
शम्अ' की ताबिंदगी से खेलता रहता हूँ मैं

तौक़-ए-गर्दन से मिला ज़ौक़-ए-गिराँबारी मुझे
लेकिन इस मेहनत-कशी से खेलता रहता हूँ मैं

बंदा-ए-मज़दूर की इज़्ज़त बचाने के लिए
इज़्ज़-ओ-जाह-ए-क़ैसरी से खेलता रहता हूँ मैं

बार-ए-ख़ातिर बन गई गो यार-ए-शातिर की बिसात
लेकिन उस पर सादगी से खेलता रहता हूँ मैं

अल्लह-अल्लह मेरा शौक़-ए-जज़्ब-ए-कामिल देखना
फ़िक्र-ए-वहदत में दोई से खेलता रहता हूँ मैं

वो मिरे ऐवान-ए-ग़म में ज़ीनत-ए-गुलदस्ता है
फूल की अफ़्सुर्दगी से खेलता रहता हूँ मैं

वो ये कहते हैं कि फ़ुर्सत में बहल जाता है दिल
अपने ‘अहसन-काज़मी' से खेलता रहता हूँ मैं


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