जहाँ से बे-तअल्लुक़ आप से बेगाना हो जाए बड़ा होशियार है वो जो तिरा दीवाना हो जाए रहें बाक़ी न उस के होश वो दीवाना हो जाए करम जिस पर तिरा ऐ जल्वा-ए-जानाना हो जाए न क्यूँ वो बे-नियाज़-ए-शीशा-ओ-पैमाना हो जाए तुम्हारी मस्त मस्त आँखों का जो मस्ताना हो जाए अदा-ओ-नाज़ और अंदाज़ का शैदा न हो जाए मिरा नाज़ों का पाला दिल कहीं उन का न हो जाए जबीन-ए-शौक़ हो संग-ए-दर-ए-जानाँ से मस ऐसी जबीन-ए-शौक़ ही संग-ए-दर-ए-जानाँ न हो जाए हक़ीक़त में वही दिल मुस्तहिक़ है दिल दुखाने का तिरी शम्-ए-रुख़-ए-रौशन का जो परवाना हो जाए करामत पीने वालों की अभी देखी नहीं वाइ'ज़ जहाँ जम जाएँ बादा-कश वहीं पैमाना हो जाए सदा-ए-'साबिर'-ए-ग़मगीं सुनी जब अपने कूचे में कहा कि क्या करें कोई अगर दीवाना हो जाए