जहाँ चाहत हो चलने की वहाँ रस्ता निकलता है पहाड़ों की जिगर को चीर कर दरिया निकलता है कोई ताक़त कहाँ जोश-ए-नुमू को रोक सकती है ज़मीं की कोख फटती है नया पौदा निकलता है बहुत नज़दीक से देखे हैं दुनिया में कई चेहरे गराँ-क़ीमत जो लगता है बहुत सस्ता निकलता है 'ज़मीर'-ए-सरकश-ओ-आशुफ़्ता-सर पे जाने क्या गुज़री उसूलों से वो कर के आज समझौता निकलता है