जहाँ-पनाह ख़ानुमाँ हवा उड़ा के ले गई वो दिल-नवाज़ बांदियाँ हवा उड़ा के ले गई फ़िशार ज़ोफ़-ए-बाह का वबाल बन गया हुज़ूर हरम से सारी लौंडियाँ हवा उड़ा के ले गई अज़ीम क़िला-दार सब असीर कर लिए गए जो जंग-जू थे ना-तवाँ हवा उड़ा के ले गई बहार छीन ली गई ख़िज़ाँ का दौर आ गया शगुफ़्ता बेल-बूटियाँ हवा उड़ा के ले गई ख़ुशा वो लहर-ए-इंक़लाब ख़त्म हो गया अज़ाब मगर वो ख़्वाब का जहाँ हवा उड़ा के ले गई सवाद-ए-क़त्ल-गाह के ख़िलाफ़ रौशनी हुई फ़िरंगियों की टोपियाँ हवा उड़ा के ले गई रवा-रवी ने ज़िंदगी को आइना दिखा दिया मगर ग़ज़ल से शोख़ियाँ हवा उड़ा के ले गई