ज़ेहन पर मुसल्लत है ख़ौफ़ की फ़ज़ा जैसे पेश आने वाला है कोई हादसा जैसे वक़्त बीत जाता है छोड़ कर नुक़ूश अपने आइने से चेहरों पर हर्फ़-ए-बे-सदा जैसे कितना तेज़ झोंका था मुश्क-बू हवाओं का क़ाफ़िला बहारों का ले उड़ी सबा जैसे जब हवा मुख़ालिफ़ थी था न हम-नवा कोई अब हवा मुआफ़िक़ है सब हैं हम-नवा जैसे रौशनी का होता है ज़ह्न में झमाका सा वो लब-ए-तबस्सुम है बर्क़-आश्ना जैसे मेरी फ़िक्र भी गोया ग़ैर की अमानत है मेरे फ़न पे हावी है कोई दूसरा जैसे आप से 'असर' साहिब लग रहा है डर हम को आप भी तो लगते हैं एक पारसा जैसे