जहान-ए-बेवफ़ा किस का दिल-ए-नाशाद होता है यहाँ जो वज़्अ का पाबंद है बर्बाद होता है ग़नीमत है कि हैं मौजूद अभी दुनिया में दीवाने भला अहल-ए-ख़िरद से मै-कदा आबाद होता है नज़र मिलते ही दिल से महव हो जाते हैं सब शिकवे वफ़ा यकसर भुला देती है जो कुछ याद होता है जो इक जान-ए-हज़ीं थी लीजिए वो भी फ़िदा कर दी अब इस के बाद क्या मेरे लिए इरशाद होता है इधर है पास-ए-तम्कीं उस तरफ़ पास-ए-वफ़ा हमदम न हुस्न आज़ाद होता है न इश्क़ आज़ाद होता है तिरे मेहर-ओ-करम पर इस लिए ख़ामोश रहता हूँ कि शुक्र-ए-लुत्फ़ भी तो शिकवा-ए-बेदाद होता है