ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ अभी मैं अपने हिजाबात में पड़ा हुआ हूँ मुझे यक़ीं ही नहीं आ रहा कि ये मैं हूँ अजब तवहहुम ओ शुबहात में पड़ा हुआ हूँ गुज़र रही है मुझे रौंदती हुई दुनिया क़दीम ओ कोहना रिवायात में पड़ा हुआ हूँ बचाओ का कोई रस्ता नहीं बचा मुझ में मैं अपने ख़ाना-ए-शह-मात में पड़ा हुआ हूँ मैं अपने दिल पे बहुत ज़ुल्म करने वाला था सो अब जहान-ए-मकाफ़ात में पड़ा हुआ हूँ