ज़िक्र हर सुब्ह ओ शाम है तेरा विर्द-ए-आशिक़ कूँ नाम है तेरा मत कर आज़ाद दाम-ए-ज़ुल्फ़ सीं दिल बाल-बाँधा ग़ुलाम है तेरा लश्कर-ए-ग़म ने दिल सीं कूच किया जब से इस में मक़ाम है तेरा जाम-ए-मय का पिलाना है बे-रंग शौक़ जिन कूँ मुदाम है तेरा आज 'नाजी' से रम न कर ऐ शोख़ देख मुद्दत सीं राम है तेरा