ज़िक्र मिरा और तेरे लब पर याद मिरी और तेरे दिल में झूटी आस दिलाने वाले आग न भड़का मेरे दिल में मुझ से आँखें फेर के तू ने ये मुश्किल भी आसाँ कर दी वर्ना तेरे ग़म के बदले लेता कौन बसेरे दिल में प्यार-भरी उम्मीदों पर अग़्यार की वो ज़र-पोश निगाहें काँटों के पैवंद लगा कर तू ने फूल बिखेरे दिल में पूछ रही है दुनिया मुझ से वो हरजाई चाँद कहाँ है दिल कहता है ग़ैर के बस में मैं कहता हूँ मेरे दिल में काश कभी सफ़्फ़ाक ज़माना मेरा सीना चीर के देखे चैन के बदले दर्द ने अब तो डाल दिए हैं डेरे दिल में डरते डरते सोच रहा हूँ वो मेरे हैं अब भी शायद वर्ना कौन किया करता है यूँ फेरों पर फेरे दिल में प्यार की पहली मंज़िल पर अंजान मुसाफ़िर देख रहा है आँखों में संगीन उजाले और सय्याल अँधेरे दिल में उजड़ी यादो टूटे सपनो शायद कुछ मालूम हो तुम को कौन उठाता है रह रह कर टीसें शाम-सवेरे दिल में