यार निकला है आफ़्ताब की तरह कौन सी अब रही है ख़्वाब की तरह चश्म-ए-मस्त-ए-सियह की याद मुदाम शीशा-ए-दिल में है शराब की तरह कभू ख़ामोश हूँ कभू गोया सरनविश्त है मिरी किताब की तरह पस्त हो चल मिसाल दरिया के ख़ेमा बरपा न कर हबाब की तरह पा-बोसी कूँ उस का है गर शौक़ क़द कूँ अपने बना रिकाब की तरह साफ़ दिल है तो आ कुदूरत छोड़ मिल हर इक रंग बीच आब की तरह पीव पीवे है शराब 'हातिम' साथ क्यूँ न दुश्मन जले कबाब की तरह