ज़िक्र ता फ़िक्र नज़र तक महदूद जुस्तुजू सारी ख़बर तक महदूद कर दिया हम ने ही नादानी में मो'जिज़ा शक़्क़-ए-क़मर तक महदूद क्या बुझा पाएगी नमरूद की आग वो इबादत जो है डर तक महदूद कुछ नहीं ज़ात के नौहे के सिवा इस अदब में जो है शर तक महदूद शैख़ की सारी कमाई अफ़्सोस रह गई लाल-ओ-गुहर तक महदूद आज भी हैं मिरे क़दमों के निशाँ बस तिरी राहगुज़र तक महदूद इश्क़ में कोई भी सौदा 'आसिम' हम ने कब रक्खा है सर तक महदूद