ज़िक्र तेरा करेंगे फिर तुझ से अभी देखा नहीं है जी भर के पूछ कर रौशनी के खम्बों से ढूँडते हैं मुझे गली कूचे मर गई रात मेरी आँखों में दिन के फ़ुटपाथ पर थे ख़्वाब पड़े चाँद क्यूँ आसमाँ से उतरेगा शाख़ से टूट जाएँगे पत्ते राज़ क्या है किसी की संगत का तुम अकेले नज़र नहीं आते वो हँसी दिल में घंटियाँ सी हैं देवताओं ने फूल बरसाए