मैं कहाँ हूँ कुछ बता दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! फिर सदा अपनी सुना दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! सो गए इक एक कर के ख़ाना-ए-दिल के चराग़ इन चराग़ों को जगा दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! वो बिसात-ए-शेर-ओ-नग़्मा रतजगे वो चहचहे फिर वही महफ़िल सजा दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! जिस के हर क़तरे से रग रग में मचलता था लहू फिर वही इक शय पिला दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! अब तो याद आता नहीं कैसा था अपना रंग-रूप फिर मिरी सूरत दिखा दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! एक मुद्दत हो गई रूठा हूँ अपने-आप से फिर मुझे मुझ से मिला दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! जाने बरगश्ता है क्यूँ मुझ से ज़माने की हवा अपने दामन की हवा दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी! रच गया है मेरी नस नस में मिरी रातों का ज़हर मेरे सूरज को बुला दे ज़िंदगी ऐ ज़िंदगी!