ज़िक्र-ए-बहार भी रहा ज़िक्र-ए-ख़िज़ाँ के साथ तेरी भी दास्ताँ है मिरी दास्ताँ के साथ उन का भी कुछ ख़याल रहे अहल-ए-कारवाँ जो आ रहे हैं गर्द-ए-रह-ए-कारवाँ के साथ उस वक़्त रंग लाएगा अफ़साना-ए-वफ़ा दिल का लहू जब आएगा अश्क-ए-रवाँ के साथ हर चीज़ अजनबी सी है हर शख़्स ग़ैर है दुनिया बदल गई निगह-ए-मेहरबाँ के साथ 'शारिब' ये जानता हूँ कि दुनिया है बेवफ़ा चलना पड़ेगा फिर भी इसी कारवाँ के साथ