ज़िंदा हों इस जहान में आख़िर कोई जवाज़ इन बस्तियों का ख़्वाब जो अब तक बसीं नहीं तुम शोख़ हो तो प्यार भी मेरा शरीर है हाँ हाँ मिरे लिए है तुम्हारी नहीं नहीं दिल हो कि सर यहाँ तो सरापा-ए-दर्द हैं ऐसा नहीं कि दर्द कहीं है कहीं नहीं ऐलान-ए-हक़-शिआ'र भी है फिर गिला भी है नफ़रीन हर कहीं है कहीं आफ़रीं नहीं की उम्र ने वफ़ा तो इन्हों ने वफ़ा न की दिल में जो आरज़ूएँ कभी थीं रहीं नहीं पस्पाई पहले ही तिरा मक़्सूम है अगर तुझ को मसाफ़-ए-जीस्त में ये अंग्बीं नहीं क़रियों के सत्र-पोश जुनूँ को सलाम-ए-शौक़ दामन नहीं है जेब नहीं आस्तीं नहीं इन दोस्ताँ में मुश्क-फ़रोशाँ में मस्त हूँ ख़ल्वत में आ के भी जो मिरे ऐब-चीं नहीं