ज़िंदगी इक सज़ा लगे है मुझे जब से तू बेवफ़ा लगे है मुझे तुझ में ख़ुद को तलाश करता हूँ तू मिरा आईना लगे है मुझे नासेह-ए-कम-निगाह का किरदार इश्क़ में अब बुरा लगे है मुझे अपनी आवाज़ से भी डरता हूँ साज़-ए-दिल भी सज़ा लगे है मुझे इंतिहा है ये बद-नसीबी की हर दुआ बद-दुआ' लगे है मुझे आशिक़ी जुर्म तो नहीं 'एजाज़' किस लिए फिर ख़ता लगे है मुझे