जलते रहना काम है दिल का बुझ जाने से हासिल क्या अपनी आग के ईंधन हैं हम ईंधन का मुस्तक़बिल क्या बोलो नुक़ूश-ए-पा कुछ बोलो तुम तो शायद सुनते हो भाग रही है राहगुज़र के कान में कह कर मंज़िल क्या डूबने वालो! देख रहे हो तुम तो कश्ती के तख़्ते देखो देखो ग़ौर से देखो दौड़ रहा है साहिल क्या अन-पढ़ आँधी घुस पड़ती है तोड़ के फाटक महलों के ''अंदर आना मनअ है'' लिख कर लटकाने से हासिल क्या क़त्ल-ए-वक़ार-ए-इश्क़ का मुजरिम जहल-ए-हवस-काराँ ही नहीं नंगे इस हम्माम में सब हैं आलिम क्या और जाहिल क्या परवाने अब अपनी अपनी आग में जलते रहते हैं शोलों के बटवारे से था मक़्सद-ए-शम्-ए-महफ़िल क्या टूटी धनक के टुकड़े ले कर बादल रोते फिरते हैं खींचा-तानी में रंगों की सूरज भी है शामिल क्या