ज़िंदगी कैसे किसी मरहले पर ठहरी रहे या'नी चलती भी रहे साँस मगर ठहरी रहे इशक़ की रस्म न बदले किसी आशिक़ के लिए राह-रौ चलते रहें राहगुज़र ठहरी रहे वक़्त ख़ुद ही हमें सिखलाएगा आदाब-ए-सुख़न लब-ए-नाशाद पे ख़ामोशी अगर ठहरी रहे बाग़-ए-इम्काँ के मनाज़िर का बुलावा है हमें कब तक उल्फ़त के दरीचे पे नज़र ठहरी रहे हम ख़ुशी के लिए अंदर भी जगह रखते हैं उस की मर्ज़ी है जिधर चाहे उधर ठहरी रहे ये सियह-बख़्त शब-ए-रंज कभी ख़त्म न हो और मिरी आँख में उम्मीद-ए-सहर ठहरी रहे दिल के बहलाने को ये हर्फ़-ए-तसल्ली क्यूँकर अब तिरे लौट के आने की ख़बर ठहरी रहे