ज़िंदगी कामयाब दो बाबा या टका सा जवाब दो बाबा हो सके तो कभी मसर्रत का मेरी आँखों को ख़्वाब दो बाबा ख़ार से हो न वास्ता जिस का कोई ऐसा गुलाब दो बाबा हो के बे-पर्दा खाओगे नश्तर अपने रुख़ को नक़ाब दो बाबा किस क़द्र ये अनारकी हर-सू हो सके तो हिसाब दो बाबा मैं हक़ीक़त को पा के हूँ ग़मगीं ख़ूबसूरत सराब दो बाबा होश से भी जो कर दे बेगाना कोई ऐसी शराब दो बाबा मैं समुंदर में रह के तिश्ना हूँ मुझ को ख़ुशियों का आब दो बाबा इस सदी को भी अब ख़ुदा के लिए इक सुनहरा सा बाब दो बाबा बख़्त की तीरगी सहूँ हँस कर कम से कम इतनी ताब दो बाबा ज़ोर जो तोड़ दे तअ'स्सुब का कोई ऐसा निसाब दो बाबा