कर दिया उस ने मुझे रुस्वा बहुत और फिर कुछ सोच कर रोया बहुत शहर में आ कर वो बौना हो गया गाँव में अपने जो था ऊँचा बहुत उस में सोहबत का असर आया नहीं साँप संदल से मगर लिपटा बहुत ख़ून में तर है मगर गुम्बद पे है गो कबूतर पर हुआ हमला बहुत आज फिर है चाक पर कच्चा घड़ा आज फिर मुँह-ज़ोर है दरिया बहुत मुल्क में अदल-ए-जहाँगीरी नहीं मुंसिफ़ों में है यही चर्चा बहुत ज़र्फ़ मेयारी है गर 'शाकिर' तिरा मात देने को यही मोहरा बहुत