ज़िंदगी कट गई सराबों में ख़ुद को ढूँडा किए किताबों में ज़िंदगी देख ले नज़र भर के हम हैं शामिल तिरे ख़राबों में हर नशा था लहू की गर्मी से अब वो मस्ती कहाँ शराबों में मुख़्तसर ये कि कट गया रस्ता कुछ गुनाहों में कुछ सवाबों में दर्द की दास्ताँ अधूरी है हम को रख लीजिए हिसाबों में क्यूँ समुंदर में शोर है बरपा कौन रहता है इन हबाबों में दिल के तारों से दर्द उठता है सोज़ होता नहीं रुबाबों में