ज़िंदगी के हसीं बहाने से मौत मिलती रही ज़माने से मौसम-ए-गुल ख़िज़ाँ-मिज़ाज सही मर के निकलेंगे आशियाने से इश्क़ की आग ऐ मआज़-अल्लाह न कभी दब सकी दबाने से रज़्म-ए-दैर-ओ-हरम से तंग आ कर दिल लगाया शराब-ख़ाने से फ़ाएदा क्या है बे-शुऊरों को नग़्मा-ए-आरज़ू सुनाने से जब ज़माने का ग़म उठा न सके हम ही ख़ुद उठ गए ज़माने से