ज़िंदगी ख़ाक में भी थी तिरे दीवाने से अब न उट्ठेगा बगूला कोई वीराने से इस क़दर हो गई कसरत तिरे दीवानों की क़ैस घबरा के चला शहर को वीराने से जल-मरा आग मोहब्बत की इसे कहते हैं जलना देखा न गया शम्अ का परवाने से किस की बेगाना-वशी से ये तहय्युर आया कि अब अपने भी नज़र आते हैं बेगाने से शैख़ साहब भी हुए मोतक़िद-ए-पीर-ए-मुग़ाँ आज ये ताज़ा ख़बर आई है मय-ख़ाने से इतनी तौहीन न कर मेरी बला-नोशी की साक़िया मुझ को न दे माप के पैमाने से ऐ 'वफ़ा' अपने भी जब आँख चुरा लेते हैं बे-रुख़ी का हो गिला क्या किसी बेगाने से